नई दिल्लीः भारत के असम में पिछले कई सालों से रोहिंग्यां शरणार्थी बसे हुए हैं। जिसे अब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अवैध करार दिया गया है। साथ ही कोर्ट ने सभी रोहिंग्यां शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजने का भी फैसला सुनाया है।
कौन है रोहिंग्यां शरणार्थी?
केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में करीब 40 हजार रोहिंग्या गैरकानूनी तौर पर रह रहे हैं। ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान बताए जा रहे हैं। इस वक्त जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली-एनसीआर और राजस्थान में रह रहें है।
अभी सही आंकड़ों की जानकारी नहीं
आंकड़ों के अनुसार, इस समय यूएनएचसीआर के पास भारत में रह रहे 14,000 से अधिक रोहिंग्या की जानकारी है। लेकिन, आंकड़ों की माने तो लगभग 40 हजार रोहिंग्या अवैध रूप से भारत में पिछले कई सालों से रह रहे हैं।
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केंद्र ने लिया बड़ा फैसला
बता दें कि अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाना और उन्हें वापस भेज देना एक निरंतर प्रक्रिया है। गृह मंत्रालय विदेशी अधिनियम 1946 की धारा 3(2) के तहत अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने और उन्हें वापस भेजने के लिए मिले अधिकार के आधार पर ही इस प्रक्रिया को शुरू किया गया है।
राज्य सरकारों को भी मिली ही शक्ति
बता दें कि, राज्य सरकारों को भी रोहिंग्या सहित अवैध रूप से रह रहे सभी विदेशी नागरिकों की पहचान कर उन्हें वापस उनके देश भेजने की पूरी छूट मिली हुई है। जानकारी के मुताबिक, मौजूदा समय में सबसे ज्यादा रोंहिग्या मुस्लिम भारत के जम्मू में अपना बसेरा बनाए हुए हैं। वहां करीब 10 हजार रोंहिग्यों की जानकारी मिली है।
क्यों भारत में आए रोहिंग्या?
साल 1982 में म्यांमार सरकार ने राष्ट्रीयता कानून बनाया था। जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया था। जिसके बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर रही थी।
साल 2012 के विवाद ने दी हवा
इस पूरे मसले को 2012 में म्यांमार के राखिन राज्य में हुए सांप्रदायिक दंगों ने काफी बढ़ावा दिया। उत्तरी राखिन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच दंगा हुआ था जिसमें 50 से ज्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए थे। जिसके बाद से रोहिंग्यों मुसलमानों में अपना रूख भारत की तरफ मोड़ लिया।
म्यांमार सरकार ने क्यों खत्म की रोहिंग्या की नागरिकता?
राखिन राज्य को पहले अराकान के नाम से जाना जाता था। 16वीं शताब्दी से ही वहां पर मुसलमानों का डेरा था। उस दौर में म्यांमार में ब्रिटिश की सत्ता थी। साल 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश कब्जा जम गया। जिसके बाद ब्रिटिश शासकों ने बांग्लादेश से मजदूरों को अराकान ले कर आए। जिसकी वजह से म्यांमार के राखिन में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती चलती गई। इन्ही मजदूरों को आज रोहिंग्या मुसलमानों के तौर पर जाना जाता है। इस बढ़ती परेशानी से छुटकारा पाने के लिए म्यांमार के जनरल ने विन की सरकार ने साल 1982 में बर्मा का राष्ट्रीय कानून लागू किया। जिसमें रोहंग्या मुसलमानों की नागरिकता को खत्म करने का एलान किया गया।
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