नई दिल्लीः सीबीआई चीफ आलोक वर्मा की याचिका को लेकर काफी हड़कंप मचा है। उनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। जिसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका दायर की है। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सीवीसी को दो हफ़्ते के भीतर रिटायर्ड जस्टिस एके पटनायक के नेतृत्व में जांच करने का आदेश दिया है।
जिसके बाद से अब पटनायक सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा के ख़िलाफ़ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने वाली कमेटी के लीडर होंगे।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के होनहार छात्र हैं पटनायक
- सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एके पटनायक का जन्म 3 जून 1949 को हुआ था।
- उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र में स्नातक और कटक से क़ानून की पढ़ाई की है।
- एके पटनायक साल 1974 में ओडिशा बार एसोसिशन के सदस्य बने थे।
- वकालत शुरू करने के करीब 20 साल बाद साल 1994 में वे ओडिशा हाई कोर्ट के अतिरिक्त सेशन जज बन गए।
- जहां से उन्हें गुवाहाटी हाई कोर्ट भेज दिया गया।
- वहां पर वो अगले ही साल हाई कोर्ट के स्थायी जज बन गए।
- साल 2002 में अपने गृह राज्य में भेजे जाने से पहले सात साल तक वहीं पर कार्य किया।
- मार्च 2005 में जस्टिस पटनायक छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
- 2005 अक्तूबर में उन्हें मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
- इसके बाद नवंबर 2009 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया।
- पांच साल बाद जून 2014 में जस्टिस पटनायक रिटायर हो गए।
सबसे चर्चित केस
अपने पूरे कार्यकाल के दौरान जस्टिस पटनायक का नाम जस्टिस सौमित्र सेन के सबसे चर्चित मामले से जुड़ा। जस्टिस सौमित्र सेन पर पैसे की हेराफेरी करने और तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाया गया था। जिसकी जांच करने के लिए जजों के तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई। जिसमें जस्टिस पटनायक भी शामिल थे।
अपनी इस कमेटी के साथ जस्टिस सेन पर लगाए गए सभी आरोपों को सही पाया गया है। सेन को ‘गलत व्यवहार’ का दोषी ठहराया गया।सौमित्र सेन पर स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया और शिपिंग अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के बीच अदालती विवाद में कोर्ट का रिसीवर रहते हुए क़रीब 33 लाख रुपये के ग़लत इस्तेमाल के आरोप लगा था।
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स्पॉट फिक्सिंग से लेकर 2जी स्कैम तक की सुनवाई
जस्टिस पटनायक ने अपने कार्यकाल के दौरान 2जी स्पेक्ट्रम मामले की भी सुनवाई की है। इस मामले के लिए मार्च 2016 में दो जजों की बेंच बनाई गई थी। जिसमें पटनायक भी शामिल थे।साथ ही आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग मामले की सुनवाई में भी जस्टिस पटनायक को बेंच में शामिल किया गया था। इसके अलावा मतदान के दौरान नोटा का वैकल्पिक प्रावधान देने के मामले में भी उन्हें शामिल किया गया था।
अध्यक्ष बनने से किया इंकार
रिटायरमेंट के बाद जस्टिस पटनायक को ओडिशा राज्य मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया। बता दें कि, जस्टिस पटनायक उस बेंच में भी शामिल थे, जिसने ये फ़ैसला दिया था कि कोई विधायक या सांसद अगर आपराधिक मामले में दोषी करार दिया जाता है तो अगले 6 सालों तक वो कोई भी चुनाव नहीं लड़ सकता है।
जस्टिस पटनायक के करीबियों का कहना है कि, वो बेहद अनुशासित और सुप्रीम कोर्ट के बेहतरीन जज थे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐसे फ़ैसले लिए हैं, जो मील का पत्थर साबित हुए है।
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