आज के बदले दौर में हामरी युवा पीढ़ी धीरे-धीरे विज्ञान से जुड़ी बातों पर भरोसा करने लगी है। जिसके चलते वे भारतीय संस्कृति और उनके रीति-रिवाजों को भी भूलने लगे हैं। हालांकि, इस तरह से भारतीय रीजि-रिवाजों और आध्यात्म से जुड़ी बातों को अनदेखा करने के कारण उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना भी करना पड़ता है।
इन्ही में पितृदोष यानी पितृपक्ष भी सबसे अहम हिस्सा है। जिसके महत्व के साथ-साथ आज हम आपको इसके लक्षण, कारण और निवारण के उपाय बताने वाले हैं।
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पितृपक्ष का महत्व
भारतीय महीनों की गणना के अनुसार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सृष्टि पालक भगवान विष्णु के प्रतिरूप श्रीकृष्ण का जन्म मनाया जाता है। जिसके बाद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी का जन्मदिन मनाया जाता है। इसके बाद भाद्र पक्ष माह की पूर्णिमा से पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व मनाया जाता है। पितृ पक्ष सोलह दिनों तक चलता है।
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक श्राद्ध की परंपरा चलती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान हमारे पूर्वज मोक्ष प्राप्ति की कामना लिए अपने परिजनों के निकट अनेक रूपों में आते हैं। इस पर्व से पितरों की आत्मा को शांति दिया जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार जिस तिथि में माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों का निधन होता है। इन 16 दिनों में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध करना उत्तम रहता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उसी तिथि में जब उनके पुत्र या पौत्र द्वारा श्राद्ध किया जाता है तो पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है।
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पितृदोष के कारण
पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका भली प्रकार से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है तो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। जिसके कारण मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है।
पितृदोष के लक्ष्ण
पितृदोष के कई लक्षण हो सकते हैं। जिनके बारे में हम बताने वाले हैं।
-पितृ दोष के कारण व्यक्ति का विवाह नहीं हो पाता।
-विवाहित जीवन में कलह रहती है।
-परीक्षा में बार-बार असफल होते रहना।
-नशे का आदि होना।
-नौकरी का ना लगना या छूट जाना।
-गर्भपात या गर्भधारण की समस्या।
-बच्चे की अकाल मृत्यु होना।
-मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना।
-निर्णय ना ले पाना।
-अत्याधिक क्रोधी होना।
पितृदोष का निवारण
अमावस्या को श्राद्ध करें-
अगर कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित है और उसे अप्रत्याशित बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो उसे अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न करें।
पीपल को जल दें-
बृहस्पतिवार के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं और फिर सात बार उसकी परिक्रमा करें।
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सूर्य को जल दें-
शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन घर में पूरे विधि-विधान से ‘सूर्ययंत्र’ स्थापित कर सूर्यदेव को प्रतिदिन तांबे के पात्र में जल लेकर, उस जल में कोई लाल फूल, रोली और चावल मिलाकर, अर्घ दें।
गाय को गुड़ खिलाएं-
अपनी भोजन की थाली में से प्रतिदिन गाय और कुत्ते को भोजन अवश्य खिलाएं।रविवार के दिन गाय को गुड़ खिलाएं।
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