नई दिल्लीः नवरात्रि के जरिए ना सिर्फ मां दुर्गे के नौ स्परूपों की पूजा की जाती है बल्कि, एक साथ सभी देवियों की कृपा भी पाई जाती है। मां के हर स्परूप का अपना महत्व है। वैसे तो सभी स्परुप मां दुर्गे के ही अवतार है, लेकिन हर अवतार के पीछे एक रहस्य है।
क्या है इन 9 रूपों का रहस्य?
पहला स्वरूप – मां शैलपुत्री
आश्विन शुक्ल पक्ष प्रथमा तिथि को मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री के पिता राजा दक्ष के यज्ञ में शिव का अनादर किया था। जिससे क्रोधित होकर उन्होंने अग्नि से अपने शरीर को भस्म कर लिया। और पर्वत राज हिमालय के यहां जन्म लेती हैं। जिससे उनका नाम शैलपुत्री हो जाता है। साथ ही उन्हें हेमवती भी कहा जाता है।
मां शैलपुत्री का मंत्र –
वन्दे वांछितलाभय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।
हिंदी में अर्थ- शैलपुत्री माता जो यशस्विनी हैं, जिनके मस्तक पर आधा चन्द्र सुशोभित है, जो वृष पर सवार हैं, इच्छित फल देने वाली हैं हम उनकी बंदना करते हैं ।
दूसरा स्वरूप – मां ब्रह्मचारिणी
आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया में मां ब्रह्मचारिणी के रूप की पूजा की जाती है। मां पार्वती जब शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या कर रही थी, तो वो कन्द-मुल, बेलपत्र, निराहार रहकर उपासना कर रही थी। मां के इस स्परूप की पूजा करने से तप, त्याग, सदाचार और दीर्घायु का वरदान मिलता है।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र –
दधाना करपद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।
हिंदी में अर्थ- जिनके हाथों में कमल का फुल, रूद्राक्ष माला और कमण्डल है, उत्तम ब्रह्मचारिणी माता मुझ पर प्रसन्न हो।
तीसरा स्वरूप – मां चन्द्रघन्टा
आश्विन शुक्ल पक्ष तृतिया तिथि को मां चन्द्रघन्टा के रूप की पूजा जाती है। मां चंद्रघंटा शेर पर सवार होकर युद्ध में दुष्टों का संहार करने वाली हैं। मां के दसों हाथों में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित हैं ।
मां चन्द्रघन्टा का मंत्र –
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युताः ।
प्रसादं तनुते मह्यां चन्द्रघण्टेति विश्रुताः ।।
हिंदी में अर्थ- समस्त सांसारिक कष्टों से मुक्ति के लिए मां चन्द्रघण्टा स्वरूप की पूजा की जाती है ।
चौथा स्वरूप- मां कुष्माण्डा
अश्विन शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को मां कुष्माण्डा के रूप की पूजा उनकी 8 भुजाएं है। जो अपने मन्द मुस्कान से ब्रह्माण्ड का निर्माण करती है। मां कुष्मांडा सिंह पर सवार सूर्य लोक में निवास करती है। उनके आठो भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र के साथ एक अमृत कलश भी है। इनकी पूजा से बहुत जल्द ही बुरे दौर का अंत होता है। ये अफने भक्तों को सुख-समृद्धि का वरदान देतीं है।
मां कुष्माण्डा का मंत्र –
सुरासम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्याम् कुष्माण्डा शुभदास्तु में ।।
पाचवां स्वरूप – स्कन्दमाता
अश्विन शुक्ल पक्ष पंचमीं को स्कन्दमाता की पूजा की जाती है। शिव पुत्र कार्तिकेय को ही स्कन्द कहा गया है। उनकी माता के रूप में इस स्वरूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिकेय सुरासुर संग्राम में सेनापति थे। स्कन्दमाता चतुर्भुजी रूप में सिंह पर विराजमान है। उनके एक हाथ में पुत्र कार्तिकेय विराजमान हैं दुसरे हाथ वरमुद्रा में हैं। और अन्य दो हाथों में कमल के फुल है। विद्या और बुद्धि के लिए इनकी पूजा की जाती है।
स्कन्दमाता का मंत्र –
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदादेवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
छठा स्वरूप- मां कात्यायनी
अश्विन शुक्ल पक्ष षष्ठी को मां कात्यायनी के रूप की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री थी। कात्यायन ने कठोर तपस्या कर मां परम्बा से उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा था।
मां कात्यायनी का मंत्र –
चन्द्र हास्सोज्ज्वलकरा शार्दुलवर वाहना ।
कात्यायनी शुभं दध्यादेवी दानव घातिनि।।
सातवां स्वरूप- मां कालरात्रि
अश्विन शुक्ल पक्ष सप्तमी को मां कालरात्रि के रूप की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि को शुभंकरी भी कहते हैं क्योंकि ये शुभफल देती हैं।
मां कालरात्रि का मंत्र –
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणी।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तुते।।
आठवां स्वरूप- महागौरी
अश्विन शुक्ल पक्ष अष्टमी को महागौरी के रूप की पूजा की जाती है। महागौरी माता स्वेत कांति की हैं, शास्त्रों में वर्णित है शिव को पाने के जब माता ने कठोर तपस्या की तो उनका शरीर क्षीण और काला पड़ गया था। जब शिव ने प्रसन्न होकर उनके उपर गंगा जल छिड़का तो माता स्वेत की तरह बन गई।
महागौरी का मंत्र –
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभे दद्यान्महादेव प्रमोददा।।
नौवां स्वरूप- मां सिद्धिदात्री
आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी को मां सिद्धिदात्री की पूजा व उपासना की जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने भी इनकी उपसना कर परम सिद्धि प्राप्त की थी।
मां सिद्धिदात्री का मंत्र –
सिद्ध गन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदाभूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ।।
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