नई दिल्लीः छठ की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इसका समापन किया जाता है। छठ का व्रत करने वाली महिलाओं को लगातार 36 घंटे का निर्जला उपवास रखना पड़ता है। इस व्रत में शुद्धता पर बहुत अधिक ध्यान देना पड़ता है।
इस बार छठ का यह पर्व 11 नवंबर को नहाय-खाय से शुरू हो गया है और 14 नवंबर को समापन किया जाएगा।
सूर्य की पूजा
वास्तविक तौर पर छठ पूजा में प्रकृति की पूजा की जाती है। इस अवसर पर सूर्य भगवान की पूजा होती है, जिन्हें एक मात्र ऐसा भगवान माना जाता है जो दिखते हैं। छठ की पूजा नदी, तालाब और जलाशयों के किनारे की जाती है। इसमें केला, सेब, गन्ना सहित कई फलों का प्रसाद भी मुख्य माना जाता है।
छठ मईया के भाई है सूर्य भगवान
ये पर्व सूर्य षष्ठी को मनाया जाता है। जिसकी वजह से इसे छठ का नाम दिया गया। इस पर्व से परिवार में सुख, समृद्धि और मनोवांछित फल की कामना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि छठ देवी भगवान सूर्य की बहन हैं। इसलिए सूर्य को अर्घ्य दिखाते हैं और छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्य की आराधना भी की जाती है।
पूजा की विधि
पहला दिन
छठ पूजा के चार दिनों में पहले दिन नहाय-खाए, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। नहाए-खाए के दिन भोर होते ही व्रती नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन चावल, चने की दाल इत्यादि बनाए जाते हैं।
दूसरा दिन
दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती भोजन करते हैं।
तीसरा दिन
तीसरे दिन यानी षष्ठी के दिन सूर्य को अर्ध्य देने के लिए लोग तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं। जहां पर स्नान करने के बाद डूबते सूर्य की पूजा करते हैं।
चौथा और आखिरी दिन
छठ के आखिरी दिन यानी सप्तमी को सूर्योदय के समय सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। जिके बाद प्रसाद बांटा जाता है।
छठ का वैज्ञानिक महत्व
सूर्य को जल अर्पित करने के पीछे वैज्ञानिक महत्व भी माना जाता है। विज्ञान की माने तो, इसके पीछे रंगों का खेल छिपा हुआ है। सुबह के समय सूर्य को जल चढ़ाते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से कई रंग शरीर के काफी फायदेमंद होते है। जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ जाती है। साथ ही सूर्य की रौशनी शरीर में विटामिन डी की कमी को पूरा करता है।
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